मेजर पिरु सिंह शेखावत
विस्फोट के पहले वाकी टाक्ती पर पीरू सिह' कीं अतिंम" आवाज थी "राजा रम्मचद्र' की जय" ।
मेजर पिरु सिंह शेखावत - राजस्थान के प्रथम परमवीर चक्र विजेता
पूरा नाम - पीरू सिंह शेखावत
जन्म - 20 मई, 1918
जन्म - भूमि -झुंझुनू , राजस्थान
शहादत - 18 जुलाई, 1948
स्थान - तिथवाल, कश्मीर
रैंक - कम्पनी हवलदार
यूनिट - 6 राजपूताना राइफ़ल्स
युद्धभारत-पाकिस्तान युद्ध (1947)
सम्मान - 'परमवीर चक्र'
राजस्थान की धरती में एक से एक वीर योद्धा हुए है. यहाँ की मिटटी में ही कुछ खास बात है ।
ऐसे ही एक महान सैनिक की कथा हम आज आप को बताने जा रहे है.
सेना में बहादुरी के सर्वोच्च पुरूस्कार से सम्मानित भारत माता के इस लाल ने युद्ध के मैदान में ऐसा साहस और शौर्य दिखाया के दुश्मन के छक्के छूट गये
भारत - पाक विभाजन -:
1947 के भारत- पाक विभाजन के बाद जब कश्मीर पर कबालियों ने हमला कर हमारी भूमि का कुछ हिस्सा दबा बैठे तो कश्मीर नरेश ने अपनी रियासत को भारत में विलय की घोषणा कर दी। इस पर भारत सरकर ने अपनी भूमि की रक्षार्थ वहाँ फौजें भेजी। इसी सिलसिले में राजपूताना राईफल्स की छठी बटालियन की ’’डी’’ कम्पनी को भी टिथवाला के दक्षिण में तैनात किया गया।
5 नवम्बर 1947 को वहाँ पहुंचे। श्रीनगर की रक्षा करने के बाद उसी सेक्टर से कबायली हमलावरों को परे खदेडऩे में इस बटालियन ने बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य किया। मई 1948 में छठी राजपूत बटालियन ने उरी और टिथवाल क्षेत्र में झेलम नदी के दक्षिण में पीरखण्डी और लेडीगली जैसी प्रमुख पहाडिय़ों पर कब्जा करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इन सभी कार्यवाहियों के दौरान पीरूसिंह ने अद्भुत नेतृत्त्व और साहस का परिचय दिया। जुलाई 1948 के दूसरे सप्ताह में जब दुश्मन का दबाव टिथवाल क्षेत्र में बढऩे लगा तो छठी बटालियन को उरी क्षेत्र से टिथवाल क्षेत्र में भेजा गया। टिथवाल क्षेत्र की सुरक्षा का मुख्य केन्द्र दक्षिण में 9 किलोमीटर पर रिछमार गली था जहाँ की सुरक्षा को निरन्तर खतरा बढ़ता जा रहा था।
अत: टिथवाल पहुँचते ही राजपूताना राईफल्स को दारापाड़ी पहाड़ी की बन्नेवाल दारारिज पर से दुश्मन को हटाने का आदेश दिया था। यह स्थान पूर्णत: सुरक्षित था और ऊँची-ऊँची चट्टानों के कारण यहाँ तक पहुँचना कठिन था। जगह तंग होने से काफी कम संख्या में जवानों को यह कार्य सौंपा गया।
18 जुलाई को छठी राईपफल्स ने सुबह हमला किया जिसका नेतृत्त्व पीरूसिंह कर रहे थे। पीरूसिंह की प्लाटून जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, उस पर दुश्मन की दोनों तरफ से लगातार गोलियाँ बरस रही थी।वे लगातार अपने साथियों को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित करते रहे थे
उन्होंने अपनी स्टेनगन से दुश्मन के सभी सैनिकों को भून दिया जिससे दुश्मन के गोले बरसने बन्द हो गये। जब पीरूसिंह को यह अहसास हुआ कि उनके सभी साथी मारे गये तो वे अकेले ही आगे बढ़ चले। रक्त से लहू-लुहान पीरूसिंह अपने हथगोलों से दुश्मन का सफाया कर रहे थे ।
मेजर पीरु सिंह के ऊपर उस समय मानो रण चडी' सवार थी ।
एक पाक बंकर को तबाह करने मे राजपूताना राइफल केे 50 जवान शहीद हो गए और लगभग पूरी कपनी' खत्म हो चुकीं थी ।
इसके बाद भी पीरु सिह" वापस नहीं मुर्ड ओर तीन ग्रेनेड लेते हुए खून से लत्तफत दूसरे बंकर की और बढे और अपनी बन्दूक के चाकु से 6 पाकिस्तानी सैनिकों को मोत के घाट उतार दिया और उसको फतह कर लिया
इसके बाद भी पीरु सिह" वापस नहीं मुर्ड ओर तीन ग्रेनेड लेते हुए खून से लत्तफत दूसरे बंकर की और बढे और अपनी बन्दूक के चाकु से 6 पाकिस्तानी सैनिकों को मोत के घाट उतार दिया और उसको फतह कर लिया
कहते है कि ग्रेनेड लगने के बाद पीरु सिह' का पूरा शरीर खून से लतफ़त्त लाल हो गया था ओर बनकर में' घुसते ही पाकिस्तानी सैनिक उन्हे कोई शेतान समझ कर डर गए ।
तीसरे बंकर की और बढते दुश्मन ने उनके शरीर में
कईं गोलियाँ मारी पर वो आगे बढत्ते ही रहे तभी तीसरे 'बंकर में घुसकर रायपल्ल के चाकू सै दुश्मन को मारा और
विस्फोट का दिया और इस तरह टीठमल तिरगा लहराया ।
विस्फोट के पहले वाकी टाक्ती पर पीरू सिह' कीं अतिंम" आवाज थी "राजा रम्मचद्र' की जय" ।
अपनी जान पर खेलकर पीरूसिंह ने जिस अपूर्व वीरता एवं कर्तव्य परायणता का परिचय दिया, भारतीय सैनिकों के इतिहास का यह एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है।
मरणोपरान्त ’’परमवीर चक्र’’ प्रदान कर उनकी बहादुर का सम्मान किया। अविवाहित पीरूसिंह की ओर से यह सम्मान उनकी माँ ने राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से हाथों ग्रहण किया। परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले मेजर पीरूसिंह राजस्थान के पहले व भारत के दूसरे बहादुर सैनिक थे। पीरूसिंह के जीवन से प्रेरणा लेकर राजस्थान का हर बहादुर फौजी के दिल में हरदम यही तमन्ना रहती है कि मातृभूमि के लिए शहीद हो जायें।
जय हिन्द। जय भारत।
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धन्यवाद
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