Sunday, 3 December 2017

जसवन्त सिंह रावत - एक अमर जवान जिनकी आत्मा करती है ड्यूटी


                             जवान बाबा

7 दिसम्बर स्पेशल।          सहस्त्र सेना झण्डा दिवस
        
        भारतीय सेना के एक ऐसे जवान की कहानी            बता  रहा हु जिनकी आत्मा आज भी शरहद            पर ड्यूटी करती है और शहादत के 55 साल             बाद भी प्रमोशन और छुट्टियां मिलती हैं.



नाम - जसवंत सिंह /  जवान बाबा

जन्म -  19 अगस्त 1941

मृत्यु  -  17 नवंबर 1 962

स्थान -  तवांग जिला ,  अरुणाचल प्रदेश

सेवा/ -  भारतीय सेना

शाखा  -   4 गढ़वाल रेजिमेंट

सम्मान -  महावीर चक्र

पद  -  सैनिक

स्पेशल - इनकी याद में सहस्त्र सेना झण्डा दिवस मनाया जाता हे

आपको भारतीय सेना के एक ऐसे जवान की कहानी बता रहे हैं, जिसे शहादत के 55 साल बाद भी प्रमोशन और छुट्टियां मिलती हैं. देश के इस लाडले बेटे की वीरता की कहानी सुनकर एक हिन्दुस्तानी होने के नाते आपका सीना भी गर्व से चौड़ा जाएगा।


1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान चीनी सैनिक अपने नापाक इरादों के साथ तेजी से भारत की ओर बढ़ रहे थे. उनकी नज़र अरुणाचल प्रदेश को हथियाने पर थी. इसी कड़ी में जब वह अरुणाचल की सीमा के पास पहुंचे तो, उनका सामना भारतीय सेना के एक ऐसे जवान से हुआ, जो किसी भी हाल में उन्हेंं रोकने के लिए तैयार था. इस बहादुर जवान का नाम था, जसवंत सिंह रावत. कहते हैं कि इस वीर सिपाही ने जब गोलियां बरसाना शुरु की, तो अकेले दम पर दुश्मन की एक पूरी कंपनी को मार गिराया था.



जसवंत सिंह 4 गढ़वाल रेजिमेंट के एक आम सैनिक थे. वह अपनी बटालियन की टुकड़ी के साथ अरुणाचल प्रदेश की सुरक्षा के लिए भेजे गये थे. चीनी सेना तेजी से आगे बढ़ रही थी. उसने हिमालय के पहाड़ों पर अपना कब्जा कर लिया था. भारत की तरफ से जसंवत अपनी टुकड़ी के साथ चौकन्ना थे, तभी चीन की तरफ से गोलाबारी शुरु हुई और उन्होंने अपने साथियों के साथ मोर्चा संभाल लिया. नतीजतन भारत चीनी सैनिकों को वहीं रोकने में कामयाब तो हुआ किन्तु चीनी सैनिकों को खदेड़ने में नाकामयाब इसलिए रहा क्योंकि उनकी रसद आपूर्ति में बाधा पड़ गयी थी.


सेना से  निकाल दीये गऐ  -:

धीरे-धीरे समय बीतता गया और सेना के पास जरूरत का सामान ख़त्म होने लगा. इसलिए सेना को आदेश दिया गया कि वह वहां से हट जायेें. सभी के हौंसले पस्त होने लगे थे. लगने लगा था कि अब चीनी सेना अरुणाचल पर कब्ज़ा कर लेगी. सेना ने भी कदम वापस करना शुरु कर दिया था, तभी जसवंत सिंह ने आगे बढ़ते हुए तय किया कि वह पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने पीछे हटने के आदेश से बगावत कर दी.

माना जाता है कि उनके इस रवैये के कारण उन्हें सेना से बेदखल कर दिया गया था, पर जसवंत फिर भी नहीं माने वह अपने फैसले पर अटल रहे. मतलब सैन्य आदेश के कारण सेना पीछे हट गयी और जसवंत अकेले मोर्चे पर डंटे रहे.

उनका हौंसला एक पल के लिए भी नहीं डगमगाया. ऐसा नहीं था कि वह खतरे से अनजान थे, पर वह जानते थे कि जंग कितनी भी बड़ी क्यों न हो, जीतना नामुमकिन नहीं होता.




भारत -चीन युद्ध   - : 1962



 1962 की जंग में चीनी सेना तवांग स्थित महात्मा बुद्ध की मूर्ति के हाथों को काटकर ले गई थी. इसके बाद चीनी सेना ने  17 नवंबर 1962 को तड़के अरुणाचल प्रदेश पर कब्जे के लिए अपना चौथा और आखिरी हमला बोल दिया था. तभी जसवंत सिंह रावत फौलाद की तरह चीनी सेना के सामने आकर खड़े हो गए थे. इसके बाद करीब तीन दिन तक चीनी सेना से लोहा लेते रहे.





नौरनंग की इस लड़ाई में चीनी सेना मीडियम मशीन गन (MMG) से फायरिंग कर रहे थे. इससे निपटने के लिए जसवंत सिंह रावत, लांस नायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह जैसे तैस छुपते-छुपाते चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और हैंडग्रेनेड की मदद से सैनिकों से MMG छीन ली थी.

 MMG छीनने के बाद तीनों जवान भारतीय बंकर में लौटने की कोशिश कर रहे थे, तभी त्रिलोक और जसंवत दुश्मन की गोली से घायल हो गए. घायल गोपाल चीनी सेनो से छीनी गई MMG राइफल भारतीय बंकर तक पहुंचाने में सफल रहे, जिनकी मदद से भारतीय फौज ने चीनी सेना को अरुणाचल पर कब्जा करने से रोकने में सफल हुए थे.

अरुणाचल प्रदेश के लोग बताते हैं कि जसवंत सिंह ने 17 नवंबर 1962 को चीनी सेना के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान मारे गए, लेकिन जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अपनी पोस्ट पर डटे रहे.

जसवंत सिंह ने मिट्टी की बर्तन बनाने वाली दो स्थानीय लड़कियों को अपने साथ लिया और अलग-अलग जगहों पर हथियार रखकर चीनी सेना पर भीषण हमला बोल दिया था. इस जोरदार हमले से स्तब्ध चीनी सेना को लगा कि वे भारतीय सेना की टुकड़ी से लड़ रहे हैं न कि एक आदमी से.

 माना जाता है कि जसवंत सिंह ने अपनी चतुराई से 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था.

 जसवंत सिंह को राशन पहुंचाने वाला फौजी चीनी सैनिक के हाथ लग गए थे. इसके बाद चीन को पता चल गया कि वे जिसे पूरी भारतीय फौज समझ रहे थे, वह बल्कि जसवंत सिंह और दो लड़कियां थीं. सेला ग्रेनेड हमले में शहीद हो गईं और नूरा को चीनी फौज अपने साथ ले गई.



 दुश्मनों के हाथ पकड़े जाने  से  पहले जसवंत सिंह ने खुद को गोली मार ली थी. इसके बाद चीनी सेना उनका सिर काटकर ले गए थे.


शहीद जसवंत सिंह रावत की याद में एक झोपड़ी बनाई गई है. इसमें उनके लिए एक बेड लगा हुआ और उस पोस्ट पर तैनात जवान हर रोज बेड की चादर बदलते हैं और बेड के पास पालिश किए हुए जूते रखे जाते हैं. कहा जाता है कि आज भी जसवंत सिंह की आत्मा यह ड्यूटी करती है

 महावीर चक्र  -:






बहादुरी के लिए गढ़वाल राइफल्स के जवानों को मरणोपरांत महावीर और वीर चक्र प्रदान किया गया. जसवंत सिह को महावीर चक्र और त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह को वीर चक्र दिया गया है. अरुणाचल प्रदेश में इस जवान को बाबा के नाम से पुकारा जाता है और वहां जसवंत बाबा का मंदिर भी है




जय हिन्द ।                                           जय जवान।





अगर आप को ये पोस्ट पसंद आये हो तो इसे शेयर कीजिये और हमारे पेज को सब्सक्राइब करे ताकि आप को भारतीय सैनिकों के बारे में जानकारी मिल सके 

No comments:

Post a Comment

                             जवान बाबा 7 दिसम्बर स्पेशल।          सहस्त्र सेना झण्डा दिवस                  भारतीय सेना के एक ऐसे जवा...