Sunday, 3 December 2017

जदु नाथ सिंह - उत्तरप्रदेश के गौरव




                        नायक यदुनाथ सिंह



         
              वे बहुत बहदुरी से लगभग 250 दुश्मन के                  सैनिको से अकेले लड़ रहे थे तभी अचानक                  एक सनसनाती हुई गोली आई और                             जदुनाथ सिंह के सिर को भेद गई.


नाम  -यदुनाथ सिंह  /  जदु नाथ सिंह

जन्म -  21 नवम्बर 1916


सेवा/ -  भारतीय सेना

शाखा  -  प्रथम  राजपूत रेजिमेंट

सेवा वर्ष  - 1941–1948

उपाधि -  नायक


युद्ध/झड़पें - भारत  -पाकिस्तान युद्ध 1947


सम्मान - परमवीर चक्र


जदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवम्बर 1916 को शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) में एक किसान परिवार में हुआ था. 1941 में जदुनाथ सिंह ने राजपूत रेजिमेंट में प्रवेश किया. जुलाई 1947 में उन्हे लान्स नायक के रूप में तरक्की मिली थी.

1947 के भारत-पाक युद्ध


एक बार मात खाने के बाद दुश्मन ने दुबारा हौसला बनाया और पहले से ज्यादा तेजी से हमला कर दिया। इस हमले में दुश्मन बौखलाया हुआ था, हिंदुस्तान की फौजों की अलग अलग मोर्चों पर कामयाबी ने पाकिस्तानी सैनिकों को परेशान किया हुआ था। उनका मनोबल तथा आत्मविश्वास वापस लाने के लिए पाकिस्तानी टुकड़ियों से उनके नायक दूरदराज के इलाकों में हमला करवा रहे थे। उन्होंने 6 हजार सैनिकों की फौज के साथ 2 पंजाब बटालियन से 23/24 दिसम्बर 1947 को झांगर से पीछे हटा लिया गया था। और अब यह लग रहा कि दुश्मन का अगला निशाना नौशेरा होगा। उसके लिए ब्रिगेडियर उस्मान हर संभव तैयारी कर लेना चाहते थे। नौशेरा के उत्तरी छोर पर पहाड़ी ठिकाना कोट था, जिस पर दुश्मन जमा हुआ था। नौशेरा की हिफाजत के लिए यह जरूरी था कि कोट पर कब्जा कर लिया जाए।



कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में दुश्मनों के छक्के छुड़ाकर नौशेरा चौकी को कब्जे में लेकर तिरंगा फहराने वाले जदुनाथ टैनधार नामक स्थान पर तैनात थे.

वे दो बार दुश्मन को पीछे धकेल चुके थे. 6 फरवरी 1948 को दुश्मन की ओर से तीसरा बड़ा हमला हुआ. इस बार दुश्मन की फौज की गिनती काफ़ी थी और जदुनाथ के सभी सिपाही घायल थे । लेकिन यदुनाथ का हौसला बुलंद था

ऐसे में जदुनाथ सिंह ने फुर्ती से अपने एक घायल सिपाही से स्टेनगन ली और लगातार गोलियों की बौछार करते हुए बाहर आ गये. इस अचानक आमने-सामने की लड़ाई से दुश्मन एकदम घबरा गया और पाक सेना को पीछे हटना पड़ा.



 6 फरवरी 1948 को भारत की 50 पैरा ब्रिगेड ने रात को हमला किया और नौशेरा पर अपना कब्जा मजबूत कर लिया। इस संग्राम में दुश्मन को जान तथा गोला बारूद का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और हार कर पाकिस्तानी फौज पीछे हट गई।

अंतिम समय

6 फरवरी 1948 का हमला पाकिस्तानी फौजों की इसी बौखलाहट का नतीजा था। वह बार बार हमले कर रहे थे। इन्हीं हमलों का मुकाबला करते हुए यदुनाथ सिंह के चार सिपाही घायल हो गये। यदुनाथ सिंह का जोश इस स्थिति का सामना करने को तैयार था। तभी दुश्मन की ओर से तीसरा हमला हुआ। इस बार दुश्मन की फौज की गिनती काफ़ी थी और वह ज्यादा जोश में भी थे। यदुनाथ के पास कोई भी सिपाही लड़ने के लिए नहीं बचा था, सभी घायल और नाकाम हो चुके थे। ऐसे में नायक यदुनाथ सिंह ने फुर्ती से अपने एक घायल सिपाही से स्टेनगन ली और लगातार गोलियों की बौछार करते हुए बाहर आ गये। इस अचानक आपने सामने की लड़ाई से दुश्मन एक दम भौचक रह गया। और उसे पीछे हटना पड़ा। इस बीच ब्रिगेडियर उस्मान सिंह को हालात का अंदाज़ा हो गया था और उन्होंने 3 पैरा राजपूत की टुकड़ी टैनधार की तरफ भेज दी थी। यदुनाथ सिंह को उनके आने तक डटे रहना था। तभी अचानक एक सनसनाती हुई गोली आई और यदुनाथ सिंह के सिर को भेद गई। वह वहीं रणभूमि में गिरे और हमेशा के लिए सो गये।

उनकी इस शहादत से उनके घायल सैनिकों में जोश का संचार हुआ और वह उठ खड़े हुए। तब तक, 3 पैरा राजपूत की टुकड़ी भी वहाँ पहुँच चुकी थी। नौशेरा पर दुश्मन नाकाम ही रहा, लेकिन नायक यदुनाथ सिंह वीरगति को प्राप्त करते हुए और मरणोपरांत परमवीर चक्र के अधिकारी हुए

बीच उनके ब्रिगेडियर ने सैनिको की एक सहायता टुकड़ी टैनधार की तरफ भेज दी थी. जदुनाथ सिंह को उनके आने तक डटे रहना था. वे बहुत बहदुरी से लगभग 250 दुश्मन के सैनिको से अकेले लड़ रहे थे तभी अचानक एक सनसनाती हुई गोली आई और जदुनाथ सिंह के सिर को भेद गई.

वे वहीं रणभूमि में गिरे और हमेशा के लिए सो गये. उनकी इस शहादत से उनके घायल सैनिकों में जोश का संचार हुआ और सभी घायल सैनिक उठ खड़े हुए. तब तक पीछे वाली सहायता टुकड़ी भी वहाँ पहुँच गयी जिसके कारण नौशेरा पर कब्जा करने में दुश्मन नाकाम रहा, लेकिन जदुनाथ सिंह वीरगति को प्राप्त हुए .



इस अपूर्व वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया.

उनकी याद प्रत्येक वर्ष 6 फरवरी को उनके बलिदान दिवस पर कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में एक विशाल मेला लगता है.


 सरकार ने उनकी जन्मभूमि हथौड़ाबुजुर्ग गाँव में उनकी याद में एक स्टेडियम बनाया है और उनकी एक आवक्ष मूर्ति स्थापित की है



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जय हिन्द।                                          जय जवान।

                         धन्यवाद

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